Monday 4 April 2011

विज्ञान का एक नियम है, जो कहता है की हर वस्तु को साफ़ देखने की एक न्यूनतम दूरी होती है | इससे ज्यादा करीब से देखने से चीज़े धुंधली दिखाई देती है | रिश्ते और ज़िन्दगी पर इस नियम का बड़ा गहरा और साफ़ असर है |
                                जो अपने हैं, हम उन्हें समेट लेने में यकीन रखते है ताकि दुनिया की धुप और आंधियां उन तक न पहुँच सके, उन्हें कोई काँटा न चुभें , उनकें चारों तरफ से सुरक्षा का घेरा रखतें हैं | लेकिन इन कोशिशों में भूल जातें है की धुप रौशनी भी देता हैं, आंधियां तूफ़ान से झूझना सिखाती है | कभी कभी अँधेरा भी राहत देता हैं |
                                  बंद मुट्ठी में पंखुडियां मुरझा जाती हैं | हवा, पानी, धूप से ही फूल खिलते हैं, हरियाली चारो ओर छा जाती हैं | जब से वक्त ने धड़कन पायी है तब से राहत और ताज़गी का नाम हवा ही है |
                                    हमारी ज़िन्दगी कें रिश्तों की सारी साँसे इसी से जुडी है | जो खुलकर सांस ले सकें रिश्तें में वही जानदार होते है | कहतें हैं की जो खो गया वो अपना नहीं था | जो अपना है वो खो नहीं सकता हैं |
                        सीलन भरे कमरें की खिडकियों को खोलना ज़रूरी है | लेकिन हम समझ नहीं पाते की मन की कौन-सी दीवार में सीलन बैठ गयी है | और हैरानी की बात यही हैं की भोगती भी हमेशा भीतर की ही दीवार हैं | जिनका ऐसे वाक्यों से वास्ता पड़ा है, वही जानता है की इनको सँभालने में कितने मौसम बीत जाते हैं | भिगोयें रहती हैं लेकिन दिखायीं नहीं देती | वही भीगता है जिसके मन में रिश्तों की महक बाकी हो, रिश्तों में कोई भी कमी न हो ऐसी दुवाओं की ज़रूरत है |
                                       ताकि किसी का भी मन भीगा न हो और न ही उसमे सीलन आये |

                                                प्यार बाँटते चालों

2 comments:

  1. Every single sentence is WOW...so deep that every sentence gives many learnings!!!! so nice to have her lives teachings through blog...Keep writing!!!

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