आज के भाग दौड़ भरे जीवन की आपा ,घापी में इंसान इतना उलझ गया है की हँसना ही भूल गया हैं | घरों को ही नहीं दिलो को भी दीवारों में कैद कर दिया हैं |
आज अपनों से भी कोई दिल खोल कर बात नहीं करता जबकि कठिन क्षणों में हमें एक दूसरे के सहारे की बहुत ज़रूरत होती हैं |
तो क्यों न हम इन दीवारों को तोड़ कर प्यार बांटे ?
प्यार बाँटते चालों
आज अपनों से भी कोई दिल खोल कर बात नहीं करता जबकि कठिन क्षणों में हमें एक दूसरे के सहारे की बहुत ज़रूरत होती हैं |
तो क्यों न हम इन दीवारों को तोड़ कर प्यार बांटे ?
प्यार बाँटते चालों
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